बिहार चुनाव के नतीजों ने राजनीति की हवा ही बदल दी है। जो नेता कल तक अपनी राजनीति पूरी तरह “सवर्ण–दलित” के नाम पर खेलते थे, उनके बोल अचानक से बदलने लगे हैं। पहले हर बात में जाति का एंगल खोजने वाले आज बड़े संयमित होकर बयान दे रहे हैं।
NDA की प्रचंड जीत के बाद सबसे बड़ा असर यही दिख रहा है कि चुनाव अब पुराने M-Y और जातीय समीकरणों से नहीं जीता जा सकता। जनता ने साफ संदेश दे दिया है कि अब सिर्फ जाति की राजनीति से फायदा मिलने वाला नहीं है।
यही वजह है कि कई नेताओं के सुर अचानक नरम पड़ गए हैं। जो बातें पहले खुलकर कही जाती थीं, अब वही लोग बेहद संभलकर बोल रहे हैं। लगता है इतनी भारी हार ने बता दिया कि वोटर अब सिर्फ काम, कानून-व्यवस्था और विकास को महत्व दे रहा है।
बिहार ने इस बार दिखा दिया—जितना डर जातीय समीकरणों को था, उतना ही भरोसा जनता ने काम पर जताया। और इसी वजह से पूरी राजनीति की भाषा एक झटके में बदल गई है।
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