“संकट में फंसे नागरिक की सबसे बड़ी दुश्मन — सरकारी खामोशी!”
ब्यूरो चीफ जालौन: शैलेन्द्र सिंह तोमर
आज के डिजिटल युग में जहां एक क्लिक पर दुनिया की जानकारी मिलती है, वहीं भारत की मौजूदा सरकार की एक चौंकाने वाली विफलता सामने आई है — आपातकालीन स्थिति में संपर्क के लिए कोई कारगर सरकारी नंबर जनता की पहुंच में नहीं है।
अगर कोई नागरिक सड़क दुर्घटना, महिला उत्पीड़न, आगजनी या किसी और गंभीर संकट में फंस जाए, तो सबसे पहले उसके मन में यही सवाल उठता है: “अब मैं किसे फोन करूं?”
सरकारी दावों के अनुसार हर विभाग के पास अपनी हेल्पलाइन है, लेकिन हकीकत यह है कि Google से लेकर सरकारी वेबसाइट तक पर आम नागरिक को सही नंबर मिल पाना खुद एक जंग है। जो नंबर उपलब्ध हैं, उनमें से अधिकतर या तो गलत हैं, या फिर घंटों तक बजते रहते हैं — कोई जवाब देने वाला नहीं।
ये सिर्फ सिस्टम फेल नहीं है, बल्कि सिस्टम का आम आदमी से पूरी तरह कट जाना है।
सरकारें आती-जाती रहीं, घोषणाएं होती रहीं, परंतु संकट की घड़ी में सरकार आमजन से सिर्फ ‘मौन व्रत’ ही निभा पाती है।
सरकार की विफलता अब केवल सुविधा की कमी नहीं रही — यह सीधे-सीधे नागरिक की सुरक्षा से जुड़ा मसला है। जब जनता की मदद के लिए बनाया गया तंत्र ही सबसे पहले नाकाम साबित हो, तो लोकतंत्र की बुनियाद पर सवाल उठना लाज़िमी है।
क्या अब हमें संकट के समय भगवान को फोन करना चाहिए, क्योंकि सरकार तक पहुँच अब मुमकिन नहीं रही?
यह सवाल हर उस नागरिक के मन में उठता है जो इस लापरवाही का शिकार बन चुका है।




