वक्फ संपत्ति पर नीलामी और कब्जे का विवाद फिर सुर्खियों में
कानपुर (आरएनएस )। वक्फ संपत्तियों को लेकर कानपुर में एक बार फिर बड़ा विवाद सामने आया है। मामला चमनगंज इलाके की एक संपत्ति का है, जिसे पहले निजी संपत्ति बताकर बेचा गया, फिर उस पर लोन लिया गया और बाद में बैंक ने इसे नीलाम कर दिया। अब खरीदार बिल्डर मुम्ताज के वारिस इस संपत्ति पर कब्जा पाने के लिए कानूनी दबाव बना रहे हैं, जिससे रहवासियों में हड़कंप मच गया है।जानकारी के अनुसार, यह संपत्ति खलील अहमद द्वारा 1933 में वक्फ अलाल औलाद के रूप में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में पंजीकृत कराई गई थी। वक्फ बोर्ड ने इसे रजिस्टर में दर्ज करते हुए इसे वक्फ संख्या 30ए प्रदान की थी। लेकिन, 1972 में अनवरी बेगम नाम की महिला ने इसे अपनी निजी संपत्ति बताते हुए अनीस जहां नाम की महिला को बैनामा कर दिया।वक्फ बोर्ड को जब इस सौदे की जानकारी हुई तो उसने 1981 में इसे अवैध बताते हुए रद्द कर दिया और जिला प्रशासन से कार्रवाई करने की सिफारिश की। बाद में अपर जिला जज कानपुर ने 1987 में सुनवाई के दौरान इस बैनामे को अवैध ठहराया और इसे रद्द कर दिया।
फाकिर अब्बास ने इसी संपत्ति को पंजाब नेशनल बैंक में गिरवी रखकर 26.20 लाख रुपये का लोन ले लिया। जब लोन नहीं चुकाया गया, तो बैंक ने कोर्ट में केस दायर कर दिया। कोर्ट ने 2003 में बैंक के पक्ष में फैसला सुनाते हुए संपत्ति को कुर्क करने का आदेश दिया।जब वक्फ बोर्ड को इसकी जानकारी हुई तो उसने इसे रोकने के लिए 2003 में बैंक और डीएम कानपुर को पत्र भेजा। लेकिन, बैंक ने इस अनुरोध को अनदेखा करते हुए 2008 में इस संपत्ति को नीलामी के लिए अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित कर दिया।14 अप्रैल 2014 को यह संपत्ति मुमताज बिल्डर प्राइवेट लिमिटेड के मालिक मुमताज अहमद ने खरीद ली। हालांकि, यह मामला वर्षों तक ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। 2020 में मुमताज अहमद की मृत्यु के बाद उनकी कंपनी के मालिक उन का बेटा मो. आमिर बन गए।जनवरी 2025 में अचानक मामला फिर तूल पकड़ने लगा जब 13 जनवरी को चमनगंज थाने से कुछ पुलिसकर्मी पहुंचे और वर्तमान निवासी हुसना बानो को मकान खाली करने का अल्टीमेटम दे दिया। पुलिस का कहना था कि इस संपत्ति के मालिक अब मुमताज बिल्डर के मो. आमिर हैं और यदि 24 घंटे में मकान खाली नहीं किया गया तो कानूनी कार्रवाई होगी।पुलिस की इस कार्रवाई से हुसना बानो और उनका परिवार सकते में आ गया। उन्होंने फिर से सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का दरवाजा खटखटाया और इस संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित कराए जाने की मांग की।यह विवाद ऐसे समय पर सामने आया है जब संसद में वक्फ अधिनियम 1995 में बदलाव को लेकर चर्चा चल रही है। सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्डों के कामकाज में पारदर्शिता लाने और महिलाओं को वक्फ बोर्ड में शामिल करने के लिए इस कानून में संशोधन किया जा रहा है। वहीं, विपक्षी दलों का कहना है कि यह बदलाव वक्फ संपत्तियों के अधिकारों को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है।अब इस मामले में कानूनी लड़ाई फिर से तेज हो सकती है। वक्फ बोर्ड के दस्तावेज बताते हैं कि यह संपत्ति वक्फ की है, जबकि बैंक और बिल्डर इसे निजी संपत्ति मानते रहे हैं। पुलिस की ओर से घर खाली कराने का दबाव बढ़ रहा है, लेकिन यह देखना बाकी है कि वक्फ बोर्ड इस पर क्या कार्रवाई करता है।इस घटनाक्रम ने कानपुर में वक्फ संपत्तियों के विवाद को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है और यह सवाल उठने लगे हैं कि आखिर वक्फ संपत्तियां किस तरह से बेची और गिरवी रखी जा सकती हैं, जबकि कानून इसकी अनुमति नहीं देता।




