*सरकारी नौकरी न मिलने से पॉलीटेक्निक के कई कोर्स पर संकट*
डिस्टिक हेड
राहुल द्विवेदी की रिर्पोट
– 90 हजार सीटें इस सत्र में खाली रह गईं संस्थानों में
– 01लाख से अधिक सीटें हैं कई ट्रेड में डिप्लोमा की
– सुशील सिंह
।* सरकारी नौकरियां न मिलने से पॉलीटेक्निक के कोर ब्रांच बंदी की कगार पर हैं।
निजी कम्पनियों में भी इन कोर्स से जुड़े रोजगार के अवसर नहीं है।
प्रदेश के पॉलीटेक्निक संस्थाओं में छात्र और छात्राओं की संख्या लगातार घट रही है।
निजी छोड़िये सरकारी संस्थानों में कई ट्रेड में 80 फीसदी सीटें खाली रह गई हैं।
प्रदेश के पॉलीटेक्निक संस्थानों में इस सत्र में 90 हजार से अधिक सीटें खाली रह गईं हैं।
बच्चों के दाखिला न लेने की वजह से दो दर्जन से अधिक संस्थानों ने कई ब्रांचों की पढ़ाई बंद कर दी है।
प्रदेश में राजकीय, अनुदानित, पीपीपी मॉडल एवं निजी 370 पॉलीटेक्निक संस्थान संचालित हो रहे हैं।
फार्मेसी छोड़कर इंजीनियरिंग और अन्य टेक्निकल ट्रेड में करीब एक लाख 59 हजार सीट हैं।
मौजूदा सत्र में काउंसलिंग के बाद पॉलीटेक्निक कॉलेजों में 90 हजार से अधिक सीटें खाली रह गई हैं।
*कई कोर्स की जरूरत नहीं*
इंदिरागांधी प्रतिष्ठान में पाथवे टू इम्प्लॉयमेंट समिट में महानिदेशक प्राविधिक शिक्षा *अविनाश कृष्ण सिंह* ने कहा था कि कई पुराने पाठ्यक्रम आज की जरूरत नहीं है।
इनकी सीटें खाली जा रही हैं।
*प्लेसमेंट का संकट, रोजगार न मिलने से अभ्यर्थी घट रहे*
शिक्षकों का कहना है कि कोर ब्रांच के डिप्लोमा करने के बाद अभ्यर्थियों के आगे प्लेसमेंट की बड़ी समस्या है।
सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बहुत कम हो गए हैं।कई विभागों में डिप्लोमा को खत्म कर दिया गया है।
निजी क्षेत्र में प्रदेश में रोजगार के अवसर बहुत कम हैं। यह कम्पनियां प्रदेश से बाहर युवाओं को 10 से 15 हजार रुपये महीने का पैकेज दे रही हैं।
इतने कम पैकेज में बाहर जाकर काम करना काफी मुश्किल होता है।
*इन ब्रांच में घटे दाखिले*
सिविल, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल, आर्कीटेक्ट, इंटीरियर डिजाइनिंग, टेक्सटाइल, पीजीडीसीएस, पीजीडीए समेत दर्जन ब्रांचों में बच्चों की संख्या लगातार कम हो रही है।
कई नए कोर्स का भी यही हाल है।
*छात्रों के दाखिले कम होने की पांच वजहें*
*1.* सरकारी विभागों में पॉलीटेक्निक डिप्लोमा की नौकरी के अवसर कम होना
*2.* प्रदेश में निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर का कम होना
*3.* निजी कम्पनियों द्वारा 10 से 15 हजार रुपये मानदेय में दूसरे राज्य में काम करना
*4.* पुराने कोर्स में रोजगार के अवसर कम होना
*5.* संस्थानों की बदहाली और शिक्षकों की भारी कमी की वजह से भी कम हो रहे हैं दाखिले
“निजी संस्थानों में कमी आयी। राजकीय कॉलेजों में 80% से अधिक सीट पर दाखिले हुए।
निजी कॉलेजों में 30 फीसदी सीटें भरी हैं।”
– *संजीव सिंह,*
सचिव, संयुक्त प्रवेश परीक्षा परिषद
डिस्टिक हेड
राहुल द्विवेदी की रिपोर्ट