कानपुर: थाने के बगल में कानून बेबस! सीसामऊ पुलिस की निष्क्रियता पर गंभीर सवाल
डिस्ट्रिक हेड । राहुल द्विवेदी
कानपुर। शहर में अपराधों और भ्रष्टाचार का बाजार तो गर्म है ही, लेकिन अब कानून के रखवालों ने भी आँखों के सामने हो रहे अपराध को पीठ दिखाना ही अपना कर्तव्य समझ लिया है। कानपुर के सीसामऊ थाना क्षेत्र से एक ऐसी ही अत्यंत हृदय विदारक और शर्मनाक घटना सामने आई है, जिसने पुलिस प्रशासन और सामाजिक संवेदनशीलता दोनों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
घटना सीसामऊ थाने के ठीक बगल में, एक मंदिर के सामने हुई। यहाँ मानवता उस समय शर्मसार हो गई, जब तीन महिलाओं ने मिलकर एक मानसिक रूप से अस्वस्थ महिला, प्रियंका, पर सरेआम बर्बरता की। प्राप्त जानकारी के अनुसार, हमलावर महिलाओं ने प्रियंका को पहले बाल पकड़कर जमीन पर गिराया, फिर डंडे से निर्ममता से पीटा और सड़क पर घसीटा। यह दृश्य इतना विचलित करने वाला था कि इसे किसी भी सभ्य समाज के लिए एक काला धब्बा माना जा सकता है।
“चलो चलो भालू आया”: तमाशा देखती सीसामऊ पुलिस
इस पूरी घटना का सबसे चौंकाने वाला और निंदनीय पहलू यह है कि यह सब कुछ सीसामऊ थाने की पुलिस की नज़रों के सामने हुआ। खबर के अनुसार, दर्जनों लोग वहाँ मौजूद थे, लेकिन सभी तमाशबीन बने रहे, किसी ने भी इस बेबस महिला को बचाने की हिम्मत नहीं की। यह स्थिति उस पुरानी कहावत को चरितार्थ करती है कि पुलिस ने “चलो चलो भालू आया” समझकर इस गंभीर अपराध को एक तमाशे की तरह देखा। कानून के रखवालों की इस निष्क्रियता ने यह सिद्ध कर दिया है कि वे आँखों के सामने हो रहे गंभीर अपराध पर भी हस्तक्षेप करने को तैयार नहीं थे।
वीडियो वायरल, फिर भी पुलिस ने झाड़ा पल्ला
घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद, जब पुलिस पर कार्रवाई का दबाव पड़ा, तब भी सीसामऊ थाना पुलिस ने अत्यंत गैर-जिम्मेदाराना रवैया अपनाया। पुलिस ने कार्रवाई करने के बजाय, यह कहकर हाथ खड़े कर दिए कि “किसी ने शिकायत नहीं की गई।” थाने के साए में हुए इतने बड़े अपराध पर पुलिस का ‘सबूत चाहना’ समाज में अंधेरा छाने जैसा है।
थाना प्रभारी का यह दावा कि “कुछ मारपीट हो गई,” वीडियो में दिख रही एकतरफा और बर्बर पिटाई से बिल्कुल मेल नहीं खाता। पुलिस ने केवल पीड़िता के भाई को बुलाकर उसे साथ भेज दिया, लेकिन हमलावर महिलाओं के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई।
पुलिस और समाज पर गंभीर प्रश्न
यह पूरी घटना पुलिस व्यवस्था की विफलता को दर्शाती है। क्या मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति की सज़ा सार्वजनिक पिटाई है? थाने के साए में भी कानून क्यों मौन रहा? सीसामऊ पुलिस की चुप्पी क्या भविष्य में ऐसे अपराधों को बढ़ावा नहीं देगी? यह घटना न केवल सीसामऊ थाना पुलिस की व्यवस्था, बल्कि नागरिकों की सामाजिक संवेदनशीलता पर भी एक गहरा आघात है। यह दिखाता है कि जब कानून के रखवाले ही आंखों पर पट्टी बांध लें, तो समाज में कानून बेबस हो जाता है।




