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Reading: हलीम मुस्लिम पीजी कॉलेज शहर का जाना माना महाविद्यालय है। स्थाई प्राचार्य के सेवानिवृत हो जाने के पश्चात वहां वरिष्ठ शिक्षक डॉ तनवीर अख्तर को कार्यवाहक प्राचार्य बनाया गया।
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Timesandspace > Uncategorized > हलीम मुस्लिम पीजी कॉलेज शहर का जाना माना महाविद्यालय है। स्थाई प्राचार्य के सेवानिवृत हो जाने के पश्चात वहां वरिष्ठ शिक्षक डॉ तनवीर अख्तर को कार्यवाहक प्राचार्य बनाया गया।
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हलीम मुस्लिम पीजी कॉलेज शहर का जाना माना महाविद्यालय है। स्थाई प्राचार्य के सेवानिवृत हो जाने के पश्चात वहां वरिष्ठ शिक्षक डॉ तनवीर अख्तर को कार्यवाहक प्राचार्य बनाया गया।

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Last updated: 2025/03/29 at 8:15 PM
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हलीम मुस्लिम पीजी कॉलेज शहर का जाना माना महाविद्यालय है। स्थाई प्राचार्य के सेवानिवृत हो जाने के पश्चात वहां वरिष्ठ शिक्षक डॉ तनवीर अख्तर को कार्यवाहक प्राचार्य बनाया गया। जब उनके द्वारा अपनी किसी समस्या के चलते इस पद पर कार्य करना असंभव बताया गया तब एक महिला शिक्षिका को प्राचार्य पद पर आसीन कराया गया जो कि वरिष्ठता क्रम में काफी नीचे हैं। आज हमारे संवाददाता ने उनसे मुलाकात की और यह जानने की कोशिश की कि महाविद्यालय में कार्य करने में उन्हें अपने साथियों से अपने विश्वविद्यालय से और प्रबंध समिति से क्या-क्या सहयोग मिलता रहा जिसके चलते हुए आप चार महीने के कार्यकाल को पूरा कर सकीं।
प्राचार्य से वार्तालाप में महाविद्यालय के विषय में अनेक बातें हुई प्राचार्य को इस पद पर कार्य करते लगभग 4 माह पूर्ण हो गए है। 23 नवंबर 2024 को प्रबंध समिति ने उन्हें इस पद पर कार्य करने का निर्देश दिया था। प्रबंध समिति के साथ हुई वार्ता में उन्हें यह भी बताया गया कि वरिष्ठ शिक्षक डॉ तनवीर अपनी समस्याओं के चलते इस पद पर आगे कार्य करने में समर्थ नहीं है जिसके बाद महाविद्यालय के अन्य दो वरिष्ठतम शिक्षकों मेजर शाहिद जफर और डॉ शोएब अंसारी से भी प्रबंध समिति ने पदभार ग्रहण करने की मौखिक रूप से बात की। दोनों ने ही अपनी-अपनी समस्याओं का हवाला देते हुए कार्य करने में असमर्थता व्यक्त की। इसके बाद के दो शिक्षकों का प्रारम्भ से कुछ विवाद चल रहा था अतः 10 B के नियम अनुसार प्रबंध समिति ने बिना किसी सीमा का विवरण दिए हुवे वर्तमान प्राचार्य को पदभार ग्रहण करने का निर्देश दिया। पद पर कार्य ग्रहण करते ही उन्होंने सबसे पहले सभी शिक्षकों को बुलाकर सबसे सहयोग की आकांक्षा व्यक्त की। इस 4 महीने के कार्यकाल में अनेक बार ऐसे मौके आए जब महाविद्यालय के शिक्षकों ने उनका साथ नहीं दिया। संभव है कि ऐसा इस लिए भी था कि उन सब के मन में यह बात गांठ बांध चुकी थी कि एक महिला और एक कनिष्ठ प्राचार्य के पद पर आसीन है। प्राचार्य को भी महाविद्यालय के कार्यों के निष्पादन हेतु महाविद्यालय के सभी लोगों के समर्थन की आवश्यकता थी परंतु ऐसा संभव नहीं हुआ। पी सी एस का पेपर भी महाविद्यालय में कराया गया जिसमें वरिष्ठ शिक्षकों का सहयोग न मिल पाने से उन्हें काफी समस्या और मानसिक रूप से आगे कार्य कैसे किया जाएगा इस प्रकार के प्रश्न उन्हें परेशान करने लगे। फिर भी मजबूरी में ही सही किसी प्रकार सब ने मिलकर परीक्षा को सुचारू रूप से संपादित करें करवाया। महाविद्यालय के समस्त शिक्षक कहीं ना कहीं विरोध के स्वर उठाते रहे कभी समय से ना आने पर रोकने पर, कभी उपस्थिति पंजिका में समय अंकित करने पर तो कभी उपस्थिति पंजिका को प्राचार्य कक्ष में रखवाने पर।
समय-समय पर महाविद्यालय की इन समस्याओं के विषय में अन्य महाविद्यालय के प्राचार्य बंधुओं के साथ विचार विमर्श कर कार्य करने का भी उन्होंने प्रयास किया जिससे किसी भी प्रकार से शिक्षकों का नुकसान ना हो सके। प्राचार्य नियमों को जानने और समझने का प्रयास लगातार करती रही। इस समय में एकल संचालन की भी व्यवस्था चल रही थी जिससे प्रबंध समिति का कोई भी हस्तक्षेप महाविद्यालय में नहीं था। प्राचार्य ने इस समय पहले से शेष पड़े कार्यो को भी संपादित करने का कार्य किया जिससे शिक्षकों को भी यह विश्वास दिलाया जा सके कि प्राचार्य उनके विरोध में नहीं है। उनके वरिष्ठ सभी शिक्षकों को और कनिष्ठ अन्य शिक्षकों को उन्होंने यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया और संदेश भी देने का प्रयास करती रहीं कि मुझे इस पद की कोई भी लालसा नहीं है लेकिन मुझे मेरे अधिकारी द्वारा जो आदेश दिया गया है मैं सिर्फ उसका पालन करते हुए इस पद की जिम्मेदारियां का निर्वहन कर रहीं हूं इसीलिए उन्होंने कोई भी चार्ज डॉ तनवीर से नहीं लिया। प्राचार्य ने बताया कि महाविद्यालय के किसी भी कार्य को रोकना नहीं चाहती थी क्योंकि यह समय स्कॉलरशिप और परीक्षा फॉर्म भरे जाने का है। विश्वविद्यालय की फीस जमा करने का समय था। यदि कोई भी प्रत्यावेदन प्रस्तुत कर इस पद पर आना चाहता है तो उन्हें किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं है बल्कि वह स्वयं उनका सहयोग कर इस पद से जाने को तैयार हैं लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता है तब तक मुझे महाविद्यालय के कार्यों के लिए आप सब का सहयोग चाहिए। किसी का काम मेरे समय में जो नियमानुसार है उसमें कोई भी बाधा नहीं आएगी ऐसा आश्वासन देने के बाद भी बीते 4 महीने में दो-तीन शिक्षकों को छोड़कर किसी ने भी मेरे कार्यों में सहर्ष सहयोग प्रदान नहीं किया। प्राचार्य ने यह भी बात बताई कि मैं जानती हूं की मेरे इस पद पर बैठने से महाविद्यालय के अनेक शिक्षक प्रसन्न और संतुष्ट नहीं थे। अतः ऐसी परिस्थितियों में उनके लिए कार्यों का निष्पादन करना बहुत कठिन था फिर भी उन्होंने अपना प्रयास करने का कार्य जारी रखा। अनेक बार ऐसी भावना उनके मन में आती रही कि इस पद को छोड़ दें पर समस्या यही थी कि यदि उन्हें एक दिन के लिए भी छुट्टी लेनी होती तो कोई भी चार्ज लेने के लिए भी तैयार नहीं था। ऐसी समस्या में सच उनका काम करना कितना मुश्किल रहा होगा फिर भी आज बात करने के बाद भी उन्होंने किसी भी शिक्षक को दोषी नहीं ठहराया लेकिन यह जरूर कहा कि अगर हम सब मिलकर कार्य करें तो इस महाविद्यालय को एक उच्च शिखर तक ले जा सकते हैं लेकिन समस्या यही है कि हम सब शिक्षक एक हो ही नहीं सकते । प्राचार्य को इस समय काफी मानसिक तनाव से भी गुजरना पड़ा। इस पद पर रहते हुए लोग उनकी बात नहीं मान रहे थे। आने जाने की समस्या का समाधान अभी तक कर पाना उनके लिए बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है। कोई भी नोटिस निकलने पर कुछ शिक्षकों को छोड़ बाकी उस पर हस्ताक्षर भी नहीं करते। कॉलेज में प्रैक्टिकल करवाए जाने की भी सूचना शिक्षक द्वारा उन्हें नहीं दी जाती थी। कॉलेज के वरिष्ठ शिक्षक में से एक ने जिनका पहले से कुछ विवाद चल रहा था अब विवाद है या नहीं पूर्ण जानकारी नहीं है उन्होंने भी प्रबंध समिति द्वारा उनको प्राचार्य न बनाते हुए मुझे कार्यभार देने का विरोध किया। यह विरोध इतना अधिक है कि जब महाविद्यालय के शोध छात्रों का वरिष्ठ अध्येता जो कि जुलाई अगस्त में ही कराया जाना चाहिए था किसी कारण से नहीं हो पाई उसे इसी समय नियम पूर्वक संपादित करवाया गया जिस पर मेकर के रूप में उसी शिक्षक को ओटीपी देते हुए यूजीसी में अपलोड करने से यह कह कर मना कर दिया गया कि उन्हें इसकी सूचना पहले से नहीं दी गई इसलिए वे इस कार्य को नहीं करेंगे। समस्या का समाधान निकाला जा सकता है लेकिन यहां पर समस्या यह है कि जिस भी शिक्षक से बात कहो वह विरोध के लिए तैयार है। शिक्षक को लिखित दो तो यह प्रश्न चिन्ह लगा दिया जाएगा कि आप प्रबंध समिति के इशारों पर कार्य कर रहीं है। लेकिन किसी वरिष्ठ शिक्षक ने यह नहीं कहा कि यदि वे हमारे खिलाफ कुछ नहीं कर रहीं हैं तो इसका सीमा से बाहर जाकर भी फायदा नहीं उठाना चाहिए। मैं जानती हूं कि इस पद से उतरने के बाद मेरा शैक्षिक जीवन प्राचार्य पद पर रहने से ज्यादा कष्टकारी होगा। आज मैंने तो किसी भी शिक्षक के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की कोशिश नहीं की भले उसने मेरे साथ कैसा भी व्यवहार किया परंतु इसका खामियाजा मुझे शिक्षक के पद पर वापस लौटने के बाद भुगतना पड़ेगा जो भी प्राचार्य पद पर आएगा वह मेरे साथ उचित व्यवहार नहीं करेगा यह भी तय है। वेतन के एकल संचालन का प्रश्न भी उनके सामने एक बड़ी समस्या थी। इससे संबंधित नियमों की जानकारी नहीं होने पर भी उनका महाविद्यालय में विरोध करते हुए कूटा का सहयोग लेकर उनके खिलाफ समाचार पत्रों में उन्हें अयोग्य और अक्षम बताया गया जबकि इस प्रश्न पर लगातार क्षेत्रीय और विश्वविद्यालय से संपर्क स्थापित किए हुए थीं। उनसे बात कर नियमों की जानकारी कर रही थी जिससे आगे किसी भी प्रकार की समस्या का सामना महाविद्यालय परिवार के किसी भी व्यक्ति को न सहना पड़े पर उनके साथियों ने समाचार पत्रों में उनके खिलाफ लिखकर देने के लिए कूटा का साथ लिया। कूटा सदस्य होने के नाते जब कोटा अध्यक्ष से उन्होंने अपनी बात कहने का प्रयास किया और महाविद्यालय के शिक्षकों के द्वारा किए जा रहे हैं व्यवहार की बात भी उन तक पहुंचाने का प्रयास किया तो कोटा अध्यक्ष ने भी उन्हें ही दोषी ठहराते हुए वेतन दिलाने की बात कही और यह भी कहा कि जब पहले के 18 लोगों ने इस पद को स्वीकार नहीं किया तो आपको इस पद को लेने की क्या जरूरत थी। मुझे यह नहीं समझ में आ रहा था कि मेरा पद को स्वीकार करना गलत था या ऐसे समय में कार्य करना जब प्रबंध समिति के बिना एकल संचालन से वेतन निर्धारण का कार्य किया जा रहा है। आज 29/03/2025 तक वेतन बिल मेरे समक्ष नहीं लाया गया पूर्व की भांति इसका दोषी मुझे ही बताया जाएगा।
सच में इस प्रकार से एक महिला का कार्य करना जब विद्यालय के शिक्षकों का सहयोग और किसी तीसरे का हस्तक्षेप नहीं था तो यह उसी तरह की व्यवस्था हो गई की असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन दोनों ही उन्हें देखना पड़ रहा है अब तो बस वह भी इसी उम्मीद में बैठी हैं कि पद छोड़ो आंदोलन कर उनकी मुश्किलों को और कितना बढ़ाया जा सकता है।
डिस्टिक हेड
राहुल द्विवेदी की रिपोर्ट

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