बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और महर्षि अगस्त्य’ पर संगोष्ठी आयोजित
लखनऊ(आरएनएस )। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के हिन्दी प्रकोष्ठ द्वारा 7 फरवरी को ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और महर्षि अगस्त्य – प्राचीनता से आधुनिकता तक’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. एस.के. द्विवेदी ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. ओम प्रकाश पाण्डेय उपस्थित रहे। मंच पर कुलसचिव प्रो. यूवी किरण, भौतिक एवं निर्णय विज्ञान विद्यापीठ के संकायाध्यक्ष प्रो. बालचन्द्र यादव, भाषा एवं साहित्य विद्यापीठ के संकायाध्यक्ष प्रो. रामपाल गंगवार, कार्यक्रम समन्वयक डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव एवं डॉ. प्रीति राय मौजूद रहीं।कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन एवं बाबासाहेब के छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया। इसके बाद आयोजन समिति की ओर से अतिथियों को पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया गया। कुलसचिव प्रो. यूवी किरण ने सभी उपस्थित लोगों का स्वागत किया, जबकि मंच संचालन का कार्य डॉ. प्रीति राय ने संभाला।संगोष्ठी में कुलपति प्रो. एस.के. द्विवेदी ने भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि महर्षि अगस्त्य जैसे ऋषि न केवल आध्यात्मिक और साहित्यिक योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रभाव भी व्यापक है। उन्होंने आयोजन समिति को इस महत्वपूर्ण विषय पर संगोष्ठी आयोजित करने के लिए बधाई दी और कहा कि हमें अपने प्राचीन महापुरुषों की विरासत को आत्मसात कर उनके आदर्शों पर चलना चाहिए।मुख्य अतिथि प्रो. ओमप्रकाश पाण्डेय ने महर्षि अगस्त्य के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि तमिल साहित्य में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि वेदों में भी महर्षि अगस्त्य का उल्लेख मिलता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक भारतीय ज्ञान परंपरा में उनका प्रभाव बना रहा।वक्ता प्रो. बालचन्द्र यादव ने ‘अगस्त्य संहिता’ के माध्यम से महर्षि अगस्त्य के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को रेखांकित किया और बताया कि इसमें विद्युत निर्माण और जल शुद्धिकरण जैसे वैज्ञानिक तथ्यों का उल्लेख मिलता है। उन्होंने आदित्य हृदय स्तोत्रम् के महत्व पर भी प्रकाश डाला।वक्ता प्रो. रामपाल गंगवार ने महर्षि अगस्त्य को ऋग्वेद के प्रथम मंडल से लेकर मध्यकाल तक का महान ऋषि और साहित्यकार बताया। उन्होंने कहा कि सप्तऋषियों में से एक माने जाने वाले महर्षि अगस्त्य को मंत्रदृष्टा ऋषि भी कहा जाता है। उनके ग्रंथों की प्राचीनता और उनके योगदान पर विस्तृत चर्चा की गई।कार्यक्रम के समापन पर समन्वयक डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संगोष्ठी के दौरान छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. नरेन्द्र कुमार, डॉ. राहुल वार्ष्णेय, डॉ. नमिता जैसल, डॉ. सुभाष मिश्रा, संध्या दीक्षित सहित विश्वविद्यालय के शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और महर्षि अगस्त्य’ पर संगोष्ठी आयोजित
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