प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश आखिर क्यों?*
दुर्घटना से देर भली,ये लाइनें दर्शाती है की जल्दबाजी घातक सिद्ध हो सकती है। किसी भी व्यक्ति विशेष के लिए, विभागों के लिए। आज वर्तमान में जनपद कानपुर में जो मुद्दा चर्चा में है। जी हां मैं उन्हीं की बात कर रहा हूं जो कभी समाचार को उचित कार्यालयों तक समाधान हेतु प्रिंट व डिजीटल माध्यम से पहुंचाने का कार्य कर रहे थे आज वही समाचार बने हुए है। समाचार संकलन और प्रकाशन में बड़े समाचार पत्रों की अहम भूमिका रही है प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और अब डिजीटल मीडिया ने भी पाठकों के दिलो में अपनी जगह बनाई है। चाहे वो न्यूज पोर्टल हो या यू-ट्यूब चैनल। लेकिन आज डिजीटल मीडिया के संवाद सूत्रों एवं पत्रकारों को वसूली बाज बता कर आखिर कलम को रोकने का प्रयास क्यों।
पिछले एक दशक में कई समस्याएं समाज वा विभागों के सामने आई। जिनके लिए माध्यम बना डिजीटल मीडिया व छोटे मझौले समाचार पत्र। लेकिन अब इन्ही माध्यमों पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा रहा है शायद सबसे बड़ी वजह यह हो सकती है कि जिनके द्वारा इन समस्याओं के निराकरण होने थे अब वही संलिप्त पाए जा रहे है अपने को बचाने की होड़ में पत्रकार एवं संवाद सूत्रों की स्वतंत्रता में अंकुश लगाने के प्रयास किए जा रहे है।
*”एक आम आदमी को जब समस्या होती है तो वह थाने जाता है जब वहां से सुनवाई नहीं होती तब वह बड़े समाचार पत्रों तक पहुंचने का प्रयास करता है ताकि पीड़ित की समस्या को प्रकाशित कर पीड़ित को न्याय मिले। लेकिन पीड़ित को मिलती है सिर्फ निराशा तब यही छोटे मझौले समाचार पत्र और डिजीटल मीडिया उस पीड़ित की समस्या को प्रकाशित कर न्याय दिलाने का प्रयास करते है।”
*”आप इसके प्रमाण देख सकते है इन्ही माध्यमों ने कई खुलासे किए है चाहे वो भू माफिया के हो, नेता के हो या सरकारी कर्मचारी के हो”
*इस बात में भी दो राह नहीं है की न्याय व्यवस्था सभी के लिए समान है अगर कोई कलम का दुर्पयोग कर अनैतिक रूप से कार्य करता है तो उस पर जांच उपरांत विधिक कार्यवाही की जाए। लेकिन प्रेस की गरिमा और स्वतंत्रता पर अंकुश चिंताजनक है। जिस पर विचार करने की आवश्यकता है।