मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में तीन दिवसीय प्रशिक्षण सत्र का समापन
– विभिन्न जिलों से आए 24 चिकित्सकों और स्टाफ नर्स को दिये गये प्रमाण पत्र
कानपुर नगर, जन्म से लेकर 28 दिन तक के बच्चे की अवस्था को नवजात कहा जाता है। बीमारियों और संक्रमण की दृष्टि से यह अवस्था बेहद संवेदनशील होती है। इस अवस्था में अगर बच्चे को किसी भी प्रकार की बीमारी हो और उसे तुरंत चिकित्सा मिल जाए, तो उसके जीवन की रक्षा हो जाती है। इससे शिशु मृत्यु दर में भी कमी आती है। यह बातें जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अरुण कुमार आर्या ने कहीं। वह गुरुवार को न्यू बॉर्न स्टेबिलाइजेशन यूनिट (एनबीएसयू) के तीन दिवसीय प्रशिक्षण सत्र के समापन अवसर पर विभिन्न जिलों से आए चिकित्सकों और स्टाफ नर्स को सम्बोधित कर रहे थे। प्रशिक्षण सत्र में करीब 22 चिकित्सकों और स्टाफ नर्स को प्रशिक्षण दिया गया।
डॉ आर्य ने बताया कि पैदाइश पीलिया ग्रसित बच्चे, न रोने वाले बच्चे, बुखार पीड़ित बच्चे, कम वजन के नवजात और जन्म के समय गर्भ का गंदा पानी पी लेने वाले बच्चे न्यू बॉर्न स्टेबिलाइजेशन यूनिट में रखे जाते हैं। अगर बच्चे का वजन 1800 ग्राम से भी कम है, तो उसे उच्च चिकित्सा संस्थान रेफर कर दिया जाता है। बालरोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर व मुख्य प्रशिक्षक डॉ अमितेश ने बताया कि प्रशिक्षण में शिशु मृत्यु दर को घटाने के लिए सरकार की एक परियोजना है, जिसमें बीमार पैदा होने वाले बच्चों और पैदा होते ही जिनको तकलीफ है उनको समय रहते इलाज देकर उनकी जान बचाई जा सके और उनका स्वास्थ्य बेहतर बनाए रखने के लिए चिकित्सकों एवं स्टाफ नर्स को प्रशिक्षण दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश टेक्निकल सपोर्ट यूनिट (यूपीटीएसयू) संस्था की विशेषज्ञ डॉ सुदिप्ता घोषाल ने बताया कि प्रदेश में शिशु मृत्यु दर इस प्रकार के प्रशिक्षण से कम की जा सकती है। विभिन्न प्राथमिक-सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पीएचसी-सीएचसी) पर भी बच्चों को उचित सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं। जिला मातृत्व स्वास्थ्य परामर्शदाता हरिशंकर मिश्रा का कहना है कि एनबीएसयू में कार्य करने वाली नर्स को समय समय पर प्रशिक्षित किया जाता है और नवजात की देखभाल की नवीनतम जानकारी दी जाती है। प्रशिक्षण के समापन समारोह में सभी प्रशिक्षुओं को प्रमाण पत्र प्रदान किये गए।
हरिओम की रिपोर्ट