*सियासत की भेँट तो नहीं चढ़ गयी कानपूर की पत्रकारिता*
👉 *पत्रकारिता कि जननी कही जाने वाली कानपुर की भूमि पर एक वरिष्ठ पत्रकार की गिरफ्तारी पर उठते सवाल ?*
👉 *सीसामऊ विधानसभा में होने वाले उपचुनाव के टिकट पर प्रबल दावेदार हैं। पत्रकार अवनीश दीक्षित*
👉 *जब विवादित भूमि के कुछ हिस्से की पावर ऑफ अटार्नी थी तो गिरफ्तारी में इतनी जल्दी कियूं ?*
👉 *100 साल लीज़ खत्म होने के बाद भूमि सरकारी नुजूल में चली गयी। तब आरोप प्रार्थना पत्र पर्टिकुलर नाम से कैसे दिया गया ?*
👉 *समर्थन में कोतवाली पँहुची महापौर “प्रमिला पांडे के पास किसका फोन आया था। जिसके फौरन बाद महापौर चलीं गयी*
👉 *प्रशासन की ऐसी क्या मजबूरी थी कि आधे दर्जन से अधिक नामज़द आरोपियों में सबसे पहले वरिष्ठ पत्रकार “अवनीश दीक्षित” की गिरफ्तारी ही संभव हो सकी ?*
👉 *कानपुर प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष की गिरफ्तारी को लेकर फ़तेहपुर प्रेस क्लब ने जतायी नाराज़गी। व अन्य संगठनों ने भी जताया विरोध।*
👉 *फिर क्या यूपी प्रशासन की नज़र में सत्ता से जुड़े किसी मामूली अवसरवादी कार्यकर्ता से भी गए गुज़रे हो गए आज के पत्रकार ?*
*सम्भल जाओ कलमकारों अगर तुम न संभल पाए*
*तुम्हारी दास्तां तक न होगी तुम्हारी दस्तानों में*
*पत्रकार उत्पीड़न पर एक और दास्तान – कानपुर प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष व भारत समाचार न्यूज़ चैनल के वरिष्ठ पत्रकार “अवनीश दीक्षित” को एक सरकारी नुजूल की भूमि से जोड़कर सुबह छः बजे गिरफ्तारी और एक सैकड़ा पुलिस कर्मी द्वारा पूरे घर की सघन जांच और उन्हें अपने पक्ष पर कुछ भी न कह पाने का मौका दिए बगैर सीधा गिरफ्तारी कहीं न कहीं पत्रकारिता की गरिमा पर चोट पंहुचाने का काम कर रही। जुझारू, निष्पक्ष पत्रकारिता व सबके मदद में काम आने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार आज गणेश शंकर विद्यार्थी जी के बलिदानी क्षेत्र में असहज हो गया। जिसे अपनी बात तक कहने का मौका दिये बगैर सीधा गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।*
*जहाँ “भारतीय प्रेस अधिनियम 1978 के तहत किसी पत्रकार को अपने विशेषाधिकार का मौका न दिया जाना सवालों को उठाने के लिए प्रेरित कर रहा है।*
*पत्रकार जिस क्षेत्र से ये खबर लिख रहा उस क्षेत्र जिला फ़तेहपुर पर यदि नज़र डालें तो यहां किसी भी भूमि या प्लाट पर कब्जा करने हेतु सत्ता से जुड़े किसी मामूली अवसरवादी कार्यकर्ता का एक बोर्ड या उसके नाम का परिचय ही काफी है। फिर पीड़ित आम नागरिक हो कोई व्यापारी हो या स्वयं पत्रकार ही कियूं न हो गिरफ्तारी तो दूर जांच के नाम पर महीनों लग जाएंगे और अवसरवादी कार्यकर्ता रातों रात मालामाल।*
*लेकिन बात जब किसी पत्रकार पर आएगी फौरन गिरफ्तारी और जेल इसका सीधा अर्थ ये है की सत्ता से जुड़े किसी अवसरवादी कार्यकर्ता से भी गए गुजरे हो गए आज के पत्रकार। आखिर सत्ता के इस सौतेले व्यहवार पर सवाल तो उठेंगे।*
*या फिर कानपुर सीसामऊ विधानसभा में होने वाले उपचुनाव पर टिकट के प्रबल दावेदार वरिष्ठ पत्रकार*
*”अवनीश दीक्षित” सत्ता से जुड़े किसी खास के आंखों की किरकिरी तो नहीं बन गए जिसके कारण “अवनीश दीक्षित” की गिरफ्तारी एक सुनियोजित साजिश की शक्ल तैयार की गई हो।*
*,,,,,,, बरहाल तू,मैं, वो, हम, ऐसा, वैसा, मर्ज़ी, फ़र्जी की उलझन में उलझी फ़तेहपुर जिले की पत्रकारिता जगत बाज़ आ जाये। और स्थित को बेहतर रूप से समझ ले।*
*कियूंकि सवाल चाहे जो भी हों लेकिन आवाज़ एक ही आनी चाहिए “पत्रकार एकता ज़िंदाबाद”
मोहित श्रीवास्तव की रिपोर्ट