498A पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अब बिना जांच नहीं होगी गिरफ्तारी, दो माह की ‘शीतलन अवधि’ अनिवार्य
फिरोज ख़ान की रिपोर्ट
नई दिल्ली, 22 जुलाई। भारतीय दंड संहिता की धारा 498A, जो कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए जानी जाती थी, अब अपने सबसे बड़े बदलाव से गुज़र रही है। देश की सर्वोच्च अदालत ने इस धारा के अंतर्गत दायर मामलों में गिरफ्तारी की प्रक्रिया को संतुलित और न्यायपूर्ण बनाने की दिशा में बड़ा फैसला सुनाया है।
अब FIR दर्ज होते ही तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जा सकेगी, बल्कि एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत मामले की जांच और समाधान की कोशिश पहले की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने लागू की ‘दो माह की शीतलन अवधि’
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि धारा 498A के तहत दर्ज होने वाले मामलों में अब गिरफ्तारी से पहले “परिवार कल्याण समिति” (Family Welfare Committee – FWC) की रिपोर्ट आवश्यक होगी। FIR दर्ज होने के बाद कम से कम दो महीने की अवधि तक कोई गिरफ्तारी नहीं की जाएगी, ताकि इस दौरान दोनों पक्षों के बीच समझौते की संभावनाएं तलाशी जा सकें।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिशा-निर्देशों को मंजूरी
इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को पूर्ण रूप से मान्यता देते हुए यह भी कहा कि अब इन निर्देशों का पालन पूरे देश में सभी पुलिस और न्यायिक अधिकारियों द्वारा अनिवार्य रूप से किया जाएगा।
जानिए क्या होंगे मुख्य बदलाव:
FIR के बाद गिरफ्तारी पर रोक:
498A के तहत दर्ज किसी भी FIR के बाद कम से कम दो महीने तक गिरफ्तारी नहीं होगी।
परिवार कल्याण समिति को जांच का अधिकार:
मामले को तुरंत FWC को सौंपा जाएगा, जो दोनों पक्षों को बुलाकर सुलह या समाधान की कोशिश करेगी।
FWC की रिपोर्ट के बाद ही कार्रवाई:
समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद ही पुलिस या मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी या अन्य विधिक कार्रवाई की अनुमति दी जा सकेगी।
समिति में कौन होंगे सदस्य: FWC में वकील, समाजसेवी, सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी या प्रशासनिक अधिकारियों की पत्नियाँ शामिल की जाएंगी, ताकि जांच में निष्पक्षता बनी रहे।
498A के दुरुपयोग पर लगेगी लगाम:
इस कदम का उद्देश्य है 498A के तहत झूठे मामलों और बेवजह गिरफ्तारी की बढ़ती घटनाओं पर रोक लगाना। इससे निर्दोष पति और उसके परिवार को बड़ी राहत मिलेगी।
समाधान की ओर बड़ा कदम
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि अब 498A का उपयोग प्रताड़ना के बजाय समस्या के समाधान और पारिवारिक सामंजस्य की दिशा में किया जाना चाहिए। कोर्ट का मानना है कि इस दिशा में परिवार कल्याण समिति की भूमिका समाज में वैवाहिक संबंधों की मर्यादा और न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा को बनाए रखने में मदद करेगी।
समाज और कानून में संतुलन
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश भर में चल रहे 498A के दुरुपयोग के मामलों और कानूनी असंतुलन को संतुलित करने की दिशा में बड़ा और महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे एक ओर जहां महिलाओं को न्याय मिलने की प्रक्रिया बनी रहेगी, वहीं दूसरी ओर निर्दोष पुरुष और उनके परिजन झूठे मामलों में फंसने से बच सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक आदेश न केवल कानून के दुरुपयोग को रोकने में सहायक सिद्ध होगा, बल्कि समाज में वैवाहिक विवादों के समाधान के लिए एक सकारात्मक और मध्यस्थता आधारित प्रक्रिया की शुरुआत भी करेगा। यह फैसला करोड़ों परिवारों के लिए आशा की नई किरण साबित हो सकता है।




