*(नौ महीनों की मोहन सरकार पर विशेष)*
*मोदी शाह और सोनी के बीच फंसीं मध्यप्रदेश सरकार……*
13 दिसंबर 2023 को मोहन यादव ने प्रदेश के 19वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी…..
9 महीनों में सरकार जिलों के प्रभारी मंत्री घोषित नहीं कर पाई….
मुख्यमंत्री फाइल लेकर दिल्ली भोपाल एक कर रहे हैं,लेकिन दिल्ली से नहीं मिल रही हरी झंडी…..
डमरू बजाओ और कृष्ण जन्माष्टमी पर मटकी फोड़ो प्रतियोगिताओं में उलझी प्रदेश की दशा …..
मुख्यमंत्री बनने के बाद से लगातार जश्नों में डूबी सरकार..…..
टूटी सड़कें , बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं और जर्जर स्कूल भवन……..
कहते हैं परिवर्तन संसार का नियम है जब लगातार दो दशकों तक मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री रहे तब जन भावनाओं को लगता था की मध्य प्रदेश में मुखिया का परिवर्तन होना चाहिए…..
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक शीर्ष कर्ताधर्ता ने भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाया और शिवराज सिंह की जगह मोहन यादव के नाम की पर्ची भेजने के लिए संगठन को बाध्य किया……
पर्ची खुली तो विधायकों की चौथी पंक्ति में खड़े मोहन यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, चौथी पंक्ति का नेता पर्ची के माध्यम से मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बना इस बात को जन-जन तक प्रचारित करने की भरसक कोशिशें की गई..….
मध्य प्रदेश में लंबे समय बाद परिवर्तन हुआ तो स्वाभाविक रूप से भाजपा के कार्यकर्ताओं की उम्मीदों की लॉटरी खुली जैसा माहौल दिखा था…..
दो-तीन महीने बाद मोहन सरकार पूरे एक साल की हो जाएगी । 2003 में भाजपा सरकार में आई,उमा भारती के नेतृत्व में सरकार बनी,उमा सरकार बनते ही चार-पांच महीने में अराजकता का माहौल निर्मित हो गया और भोपाल से लेकर दिल्ली तक सभी भाजपा नेताओं ने उमा से मुक्ति कैसे मिलेगी इस फार्मूले पर काम करना शुरू हुआ, बंपर बहुमत लेकर आई उमा भारती मात्र 9 महीने प्रदेश की सरकार चला पाई और बुलडोजर मंत्री के नाम से कुख्यात भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर जिनको संघ, अटल बिहारी वाजपेई,लालकृष्ण आडवाणी और उस समय भाजपा की सबसे ताकतवर टीम प्रमोद महाजन अरुण जेटली राजनाथ सिंह जैसे नेताओं का वरदहस्त प्राप्त था,प्रदेश संगठन की ओर से दबंग संगठन महामंत्री कप्तान सिंह सोलंकी गौर साहब के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे । नेतृत्व में क्षमता विहीन निकले बाबूलाल गौर को 11 महीनों में जाना पड़ा था, गौर की विदाई में कैलाश विजयवर्गीय,अनूप मिश्रा, नरोत्तम मिश्रा जैसे कद के एक दर्जन नेताओं ने विरोध की कमान संभाली थीं।
गौर साहब गये तो एमपी को नए मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान मिले । चौहान ने मध्य प्रदेश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान बनाया । 2008,2013 और 2018 में चार छः सीटों के अंतर से कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका भाजपा हाई कमान ने दिया । 2020 में जब कांग्रेस के विभाजन के बाद सरकार बनी तो चौहान फिर से भरोसेमंद साबित हुए ।
2023 के विधानसभा चुनावों में सभी सर्वे रिपोर्टो को ध्वस्त करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने बड़े अंतर से भाजपा की जीत दर्ज कराई ।
बड़े बहुमत से भाजपा जीत कर आई इसका श्रेय सरकार के नेतृत्वकर्ता को दिया जाना स्वाभाविक था परंतु दिल्ली के मोदी और शाह ने चौहान के बढ़ते कद को रोकने के लिए पर्ची भिजवा दी, पर्ची में जो नाम खुला उसको देखकर राजनीतिक समझ रखने वालों के होश उड़ गए । अपने पुत्र के स्थान पर विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय को उतारा गया ,भाई के स्थान पर केंद्रीय मंत्री वरिष्ठ नेता प्रहलाद पटेल को चुनाव में भेजा, केंद्र सरकार में मंत्री बनने की योग्यता रखने वाले राकेश सिंह को भी विधानसभा भेज दिया गया वहीं मोदी सरकार में चौथी पोजीशन रखने वाले नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा चुनाव लड़ने का आदेश हुआ, जब इतने बड़े-बड़े निर्णय हो रहे थे तब किसी को आभास नहीं था कि उनके कद और वरिष्ठता का मज़ाक बनाया जायेगा। जिस व्यक्ति को उंगली पकड़कर चलना सिखाया हो और नेता बनाया हो उसी को सलाम ठोकने की जिल्लत उठानी पड़ सकती है । इसके साथ ही प्रदेश के सबसे वरिष्ठ नेता गोपाल भार्गव,भूपेंद्र सिंह ,सीताशरण शर्मा, अजय विश्नोई, रामेश्वर शर्मा जैसे नेताओं को भाजपा नेतृत्व ने मुंह दिखाने लायक नहीं रहने दिया, इसको मोदी शाह का अहंकार कहा गया ।
मोहन यादव सरकार अगले तीन चार महीनों में अपने कार्यकाल का 1 वर्ष पूर्ण करेंगी । अपने 9 माह के कार्यकाल में मोहन यादव जिलों के प्रभारी मंत्री नहीं बना पाए, प्रदेश में कौन कौन मंत्री हैं, किसके पास कौन सा विभाग है यह भी भाजपा कार्यकर्ताओं को पता नहीं है, मंत्री असमंजस में है इसलिए अब तक जिलों के दौरे तक नहीं किये ।
मोहन यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं यह उनको समझना जरूरी है, पूर्ववर्ती सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की कापी करनें में वह दिन-रात जुटे हैं ।
मुख्यमंत्री के सिपहसालारों को इस बात का ज्ञान नहीं है की कॉपी कॉपी होती है,ओरिजिनल कभी नहीं बन सकती । पूर्ववर्ती सरकार की जिस लाडली बहना योजना को पीछे धकेलने की कोशिशें लगातार की जा रही हैं, मुखिया को यह भी समझ लेना चाहिए कि वह महज 13 हजार वोटों से जीतकर आये है अगर लाडली बहिनों के वोट हटा दिये जातें तो 25 हजार से पराजय मिलती ( इसमें शिवराज सिंह चौहान की योजना की प्रशंसा की जानी चाहिए थी )
दिल्ली इंदौर उज्जैन भोपाल के बीच झूलती इस सरकार का क्या भविष्य हैं, यह तय नहीं है । प्रदेश सरकार अब तक स्थाई मुख्य सचिव की तलाश नहीं कर पाई, जिलों में अधिकारी अपनी नई पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं।
कैलाश विजयवर्गीय को लंबे समय तक मध्य प्रदेश की राजनीति से दूर रखा और अपने बेटे का हक मार कर जूनियर के नेतृत्व में मंत्री बना दिया, वही अपने भाई पूर्व मंत्री को घर बैठाकर,प्रहलाद पटेल मंत्री बना दिया । कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह जैसे बड़े नेता मंत्री तो बन गए हैं लेकिन अपने कद अनुसार मंत्री जैसे कब दिखाई देंगे इसका प्रदेश के भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को इंतजार है ।
बेशक मोहन यादव बहुत जूनियर है,उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया है। इस निर्णय को भाजपा कार्यकर्ता का सम्मान कहा गया , लेकिन दक्षता और क्षमता की परख होती तो शायद अच्छे परिणामों की उम्मीद की जा सकती थीं, योग्यता के दम पर बुलंदी पर पहुंचना और कृपा की दम पर बुलंदी पर पहुंचना दोनों में बहुत अन्तर है।
मुख्यमंत्री को हमेशा आत्मविश्वास में रहना ही चाहिए लेकिन “अति” आत्मविश्वास प्रदेश के लिए हानिकारक है, उनके पास मोदी और शाह का कितना भी मजबूत समर्थन हो सुरेश सोनी जैसे कितने भी बड़े संघ के पदाधिकारी का आशीर्वाद प्राप्त हो लेकिन जब बदनामी के बादल छाते हैं तब सब अपना अपना दामन बचाने में लग जाते हैं । याद किया जाना चाहिए कि लक्ष्मीकांत शर्मा को तत्कालीन संघ प्रमुख सुदर्शन जी का बेसुमार आशीर्वाद प्राप्त था और सुरेश सोनी के बेहद नजदीकी थें, लेकिन जब ग्रहण लगा तो सुदर्शन जी भी अपने चक्र से रक्षा नहीं कर पाए, सोनी जी का दंभ भी लक्ष्मीकांत जी को जेल जाने से बचा नहीं पाया, जो खनन माफिया लक्ष्मीकांत शर्मा के करीबी थे, आज वही इस सरकार के करीबी हैं ।
बदहाल सड़कें, सरप्लस बिजली होने के बाद भी भीषण गर्मियों में अघोषित बिजली की दिग्विजय सिंह के कार्यकाल जैसी कटौती होती रही,विधायक गालियां सहते रहे, अच्छे स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए अब आवाज़ें उठने लगी है और यह आवाजें विपक्षी दल कांग्रेस की ओर से नहीं आपके ही दल भारतीय जनता पार्टी के अंदर आग जैसी धधक रही है, कमी है तो केवल विरोध के नेतृत्वकर्ता की । भाजपा के विधायक लगातार आपको पत्र भी लिख रहे हैं। अगर आप यह कहेंगे कि पूर्ववर्ती सरकार की देन है तो वह भी भाजपा की सरकार थीं।
डमरू बजवायें,कृष्ण जन्माष्टमी मटकी फोड़ प्रतियोगिता करायें, उल्टी और सीधी कलाई में खूब राखी बंधवायें परंतु मोहन जी बहुत हो गया अब तो मुख्यमंत्री बन जायें ।
ब्यूरो रिपोर्ट