कानपुर: ‘गैस चैंबर’ बना शहर, 479 पहुँचा AQI; सिस्टम की चुप्पी से घुट रहा आम आदमी का दम
डिस्ट्रिक हेड। राहुल द्विवेदी।
कानपुर। औद्योगिक नगरी कानपुर इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। शहर की हवा में घुला ‘ज़हर’ अब जानलेवा स्तर पर पहुँच चुका है। गुरुवार को शहर के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 479 के पार दर्ज किया गया। यह स्थिति न केवल ‘गंभीर’ है, बल्कि एक मेडिकल इमरजेंसी की ओर इशारा कर रही है। लेकिन विडंबना देखिए, जहाँ राजधानी दिल्ली के प्रदूषण पर पूरा देश चर्चा करता है, वहीं कानपुर की दम घोंटती हवा पर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने रहस्यमयी चुप्पी साध रखी है।
दिल्ली नेशनल क्राइसिस, कानपुर सिर्फ ‘लोकल नॉइज़’?
कानपुर की जनता में इस बात को लेकर गहरा रोष है कि प्रदूषण को लेकर सारी चिंताएँ सिर्फ दिल्ली तक सिमट कर रह गई हैं। मानो भारत की सीमा और नागरिकों के फेफड़ों की अहमियत दिल्ली बॉर्डर पर खत्म हो जाती हो। हकीकत यह है कि कानपुर की गलियों में छाई धुंध (Smog) आँखों में जलन और सीने में भारीपन पैदा कर रही है, लेकिन सिस्टम इसे ‘सामान्य मौसमी बदलाव’ मानकर सो रहा है।
एयर कंडीशनर और प्यूरीफायर बनाम आम आदमी
शहर की इस ज़हरीली हवा ने समाज के दो हिस्सों को स्पष्ट रूप से बांट दिया है। सिस्टम चलाने वाले जिम्मेदार अधिकारी और रसूखदार जनप्रतिनिधि अपने एयर-कंडीशन्ड ‘बबल’ में सुरक्षित हैं। उनके घरों में महंगे एयर प्यूरीफायर हैं और दफ्तरों में फिल्टर्ड हवा। वहीं, सड़क पर रिक्शा चलाने वाला, कारखानों में काम करने वाला मजदूर और स्कूल जाने वाला बच्चा इस ‘धीमे ज़हर’ को पीने को मजबूर है। आम आदमी न तो महंगा प्यूरीफायर खरीद सकता है और न ही शहर छोड़कर कहीं और जा सकता है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ‘कुंभकर्णी’ नींद
जब AQI 450 के स्तर को पार करता है, तो नियमतः ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ (GRAP) के तहत निर्माण कार्यों पर पूर्ण रोक, सड़कों पर पानी का छिड़काव और भारी वाहनों के प्रवेश पर पाबंदी लगनी चाहिए। लेकिन कानपुर की सड़कों पर उड़ती धूल और औद्योगिक क्षेत्रों से निकलता काला धुआँ प्रशासन के दावों की पोल खोल रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी दफ्तरों से बाहर निकलने की ज़हमत तक नहीं उठा रहे हैं।
अस्पतालों में बढ़ी मरीजों की तादाद
हैलेट और कार्डियोलॉजी जैसे प्रमुख अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या में 30 से 40 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। डॉक्टरों का कहना है कि यह हवा स्वस्थ व्यक्ति को भी अस्थमा और हृदय रोगों का शिकार बना सकती है। “कानपुर भी भारत है” – यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों की चीख है जो हर सांस के साथ अपनी आयु कम कर रहे हैं।
समय आ गया है कि प्रशासन इस ‘प्राथमिकताओं के दिवालियेपन’ से बाहर निकले और कागजी आंकड़ों के बजाय धरातल पर सख्त कदम उठाए। यदि अब भी नींद नहीं खुली, तो यह खामोशी आने वाली पीढ़ियों के लिए जानलेवा साबित होगी।




