वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: दरगाह आला हज़रत की याचिका पर अहम सुनवाई
फिरोज खान की रिपोर्ट
‘वक्फ बाय यूजर’ खत्म करने और गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर कोर्ट ने जताई गहरी चिंता
नई दिल्ली/बरेली, 17 अप्रैल 2025: देश-विदेश में मशहूर दरगाह आला हज़रत / ताजुश्शरिया और उसका 107 साल पुराना संगठन जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 16 अप्रैल को एक अहम सुनवाई हुई। वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश श्री संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ ने कानून के तीन मुख्य प्रावधानों पर गहरी चिंता व्यक्त की।
सुनवाई के दौरान उठे प्रमुख सवाल:
1. ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियों का भविष्य अंधकारमय?
कोर्ट ने पूछा कि जिन मस्जिदों और वक्फ संपत्तियों के पास सैकड़ों साल पुराने दस्तावेज मौजूद नहीं हैं, उन्हें कैसे पंजीकृत किया जाएगा? ‘वक्फ बाय यूजर’ की अवधारणा को समाप्त करने पर कोर्ट ने आशंका जताई कि इससे धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों की कानूनी हैसियत खतरे में पड़ सकती है।
2. वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य: संविधान के खिलाफ?
न्यायालय ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि जब हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति की अनुमति नहीं है, तो वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य कैसे नियुक्त किए जा सकते हैं? यह संविधान के अनुच्छेद 26 का स्पष्ट उल्लंघन है।
3. सरकारी दखल और अधिकारों का हनन:
कोर्ट ने वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण और प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप को संविधान के अनुच्छेद 14, 25 और 26 के उल्लंघन के रूप में देखा।
जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सलमान हसन खान (सलमान मिया) ने कहा:
“यह अधिनियम इस्लामी आस्था और वक्फ संपत्तियों की आत्मा पर चोट करता है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ इस कानून की संवैधानिक कमजोरियों को उजागर करती हैं। हम इसे मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हैं और इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई पूरी ताकत से जारी रखेंगे।”
उन्होंने यह भी बताया कि याचिका में अधिनियम को अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 और 300A का उल्लंघन बताया गया है।
सुनवाई के दौरान वकीलों की चार सदस्यीय टीम—रंजन कुमार दुबे, प्रिया पुरी, तौसीफ खान और मुहम्मद ताहा—ने मजबूती से पक्ष रखा।
मौके पर कोर कमेटी के सदस्य डॉ. मेहँदी हसन, हाफ़िज़ इकराम रज़ा और इरफान उल हक भी उपस्थित थे।