*डिजिटल अटेंडेंस और विद्यालयों में शिक्षकों की कमी का अंतर्द्वंद्व*
शिक्षक शिक्षार्थी के बीच शिक्षा एक ऐसा मजबूत पुल है जो परिवार समाज और देश के भविष्य का निर्माण करता है। एक तरफ सरकार बेसिक शिक्षा परिषद के शिक्षकों की टेबलेट के माध्यम से डिजिटल अटेंडेंस देने पर जोर दे रही है सारे रजिस्टर का ऑनलाइन डाटा फीडिंग शिक्षकों के द्वारा कराए जाने की जिद कर रही है वहीं दूसरी तरफ हजारों शिक्षकों को विद्यालय से बाहर अन्य कार्यों में लगाया गया है। ज्ञात हो बेसिक शिक्षा के शिक्षक जो की एआरपी तथा संकुल शिक्षक के तौर पर मनोनीत किए गए थे वह लगातार कई वर्षों से अपने विद्यालय न जाकर दूसरों के विद्यालय में गुणवत्ता सुधार के कार्य में लगे हुए हैं।
एकेडमिक रिसोर्स पर्सन (एआरपी) प्रदेश के 821 विकासखंडों में एआरपी की नियुक्ति 2019 में की गई थी। 4105 और 59 नगर संसाधन केंद्र में 295 पद हैं। वर्तमान में सभी 75 जिलों में तीन हजार से अधिक एआरपी कार्यरत हैं। अक्तूबर 2019 में एआरपी के चयन का शासनादेश जारी हुआ था, जिसमें अधिकतम तीन साल के लिए चयन का प्रावधान था परंतु जिला स्तर पर नए शिक्षकों का चयन न करके उन्हें शिक्षकों को लगातार इस पद पर बनाए रखा जा रहा है।जिसके कारण शिक्षकों के अंदर शिक्षक न होकर अधिकारी की भावना पनपने लगी और इस परंपरा ने दूर दराज के स्कूलों में एक नए शोषण तंत्र को जन्म दिया । परिषदीय स्कूलों में पठन-पाठन बेहतर करने और सहयोगात्मक पर्यवेक्षण के उद्देश्य से बेसिक शिक्षा परिषद के शिक्षक ही विषय वर्ष चयनित किए गए थे और इन्हें अन्य विद्यालयों में जाकर वहां पर यह देखना की ड्यूटी थी कि उस विषय की पढ़ाई करने का तरीका बच्चों को समझ में आ रहा है कि नहीं और यदि समझ में नहीं आ रहा है तो कक्षा में जाकर आसान विधि से पढ़ने का तरीका समझाएं परंतु ऐसा संभव नहीं हो सका। इसी प्रकार शिक्षण संकुल अपने न्याय पंचायत के शिक्षकों के व्हाट्सएप समूहों के माध्यम से नवाचारी कार्यों को प्रोत्साहन करेंगे और एआरपी का सहयोग अपने न्याय पंचायत के विद्यालयों में प्रदर्शन सुधार हेतु करेंगे।
लगातार 6 सालों से अपने विद्यालय में बच्चों को पठन-पाठन न करने के कारण तथा अन्य विद्यालय में जाकर विभिन्न रजिस्टर और शिक्षकों की चेकिंग का एक नया सिलसिला शुरू हो गया और इन सब में एक नई भावना उत्पन्न हुई कि मैं अधिकारी हूं और मुझे शिक्षकों को हड़काने का अधिकार मिल गया, कहीं-कहीं तो वसूली कभी अधिकार मिल गया है और इस गलतफहमी का मुख्य कारण है लगातार कई वर्षों से शिक्षक दायित्व से मुक्त होकर रिसोर्स पर्सन के रूप में कार्य करना।
कहीं ब्लॉकों में संकुल शिक्षक के तौर पर कार्य करने वाले शिक्षकों ने अपने विद्यालय में रहना पसंद करते हुए सामूहिक स्टीफे भी दिए तथा अपने विद्यालय में पूर्ण रूप से पढ़ाई में ध्यान देने हेतु इस दायित्व से मुक्त करने का आग्रह भी किया परंतु अधिकारियों ने शासनादेश के अवहेलना करते हुए उन्हें लगातार जबरदस्ती समय के साथ जारी रखा।
वैसे भी हम आंकड़ों के माध्यम से लगातार देख रहे हैं की बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षकों की कमी है ऊपर से जो नियुक्तियां शिक्षक के तौर पर हुई थी उन्हें अन्य कार्यों में लगा दिया गया है जिस विद्यालय में शिक्षकों की और कमी हो गईहै। टैबलेट के माध्यम से डिजिटल हाजिरी को या अन्य प्रकार के आंकड़ों की फीडिंग यदि विद्यालय में कम शिक्षक हैं तो वाकई बहुत कठिन काम हो गया है ।शिक्षक बच्चों को पढ़ाया या बाबू गिरी करते हुए अपने रजिस्टरों को ऑनलाइन करें। यह भी बताते चलें कि ऑनलाइन टाइपिंग या अन्य प्रकार की कभी डाटा फीडिंग की ट्रेनिंग शिक्षकों को नहीं दी गई।
बुनियादी सुविधाओं की यदि बात की जाए तो आज बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षा के स्तर में लगातार सुधार हो इसके लिए जरूरी है कि हम शिक्षकों को अन्य कार्यों से अलग कर उनके विद्यालयों में वापस भेजें । बीईओ आफिस ,बीएसए ऑफिस या डाइट में जो शिक्षक अटैच किए गए हैं उन्हें भी वापस विद्यालयों में भेजा जाए और उन्हें हर प्रकार के कार्य से मुक्त होकर बच्चों को शिक्षा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। अन्य कार्यों को करने के कारण ऐसा ना हो शिक्षक के रूप में नियुक्त व्यक्ति अपने कार्य को ही भूल जाए।
शिक्षकों को बच्चों को शिक्षा देने के कार्य से ज्यादा उन्हें डाकिए के कार्य में लगा दिया गया है जो खंड शिक्षा अधिकारी के मैसेज और आदेशों को विद्यालय तक पहुंचाते हैं विद्यालयों की स्थिति से अवगत हो वापस खंड शिक्षा अधिकारी को सन्देश पहुंचाते हैं जबकि यह कार्य अन्य विधि से भी किया जा सकता है। शिक्षकों के इस प्रकार के कार्यों में लगाने से बच्चों का नुकसान होता है और पढ़ाई का स्तर गिरता है।
बेसिक शिक्षा विभाग में हो रहे टेक्निकल शिक्षा क्षेत्र में क्रांति के मुद्दे को नेटवर्क क्रांति के बिना समझना संभव नहीं। यह भी बड़े अधिकारियों को समझना चाहिए शहर सेदूर के गांव में आज भी एयरटेल न हीं जियो ,न हीं अन्य प्रकार की इंटरनेट प्रदाता कंपनियों का नेटवर्क मिलता है वाई-फाई मिलना तो बहुत दूर की बात है। टैबलेट के माध्यम से सभी रजिस्टरों का रखरखाव उपस्थिति का भेजा जाना बहुत ही दुर्लभ कार्य है क्योंकि नेटवर्क के बिना यह संभव नहीं। और स समय उपस्थिती भेजना तो बिना नेटवर्क के बिल्कुल ही संभव नहीं।
विद्यालयों में बायोमेट्रिक प्रणाली उच्च और माध्यमिक शिक्षा की भांति ही सफल हो सकती है यदि हर विद्यालय को जहां लाइट नहीं है इंटरनेट नहीं है पानी नहीं है बच्चों की बैठने की व्यवस्था नहीं है वहां पर भी हम बायोमेट्रिक लगाकर उपस्थित मंगा सकते हैं परंतु क्या उपस्थिति कम है या कम शिक्षक उपलब्ध हैं इसकी भी शिकायत कहीं की जा सकती है किस प्रकार एक या दो शिक्षक पांच कक्षाएं और सैकड़ो बच्चों को शिक्षा से जोड़ सके, यह सम्भव कैसे ?यह भी प्रश्न चिन्ह उठना है कि इसकी शिकायत कहां की जाएं और क्या शिक्षा की गुणवत्ता और स्तर के सुधार में इस तरह के प्रश्न और बातें सुनने के लिए कोई तैयार है।
क्या हम बच्चों के अनुपात में शिक्षकों को विद्यालय से जोड़ पा रहे हैं।
डिजिटल अटेंडेंस और विद्यालयों में शिक्षकों की कमी का अंतर्द्वंद्व*
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