ज्योतिषियों का सहारा लेना पड़ रहा है ,जिनका सहारा दूसरे लोग भी लेते हैं।
मै अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मैंने विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन मेरे प्रतिद्वंदी तबके सत्तारूढ़ दल के मंत्री बालेंदु शुक्ल ने मेरा नामांकन रद्द नहीं कराया। मुझे चुनाव लड़ने दिया। मुझे खरीदने की कोशिश नहीं की। मुझे धमकाने की कोशिश नहीं की । जिला निर्वाचन अधिकारी से कुछ नहीं कहा ,क्योंकि जब मैंने चुनाव लड़ा था तब मोदी युग नहीं था। शायद मोदी जी भी तब कहीं नहीं थे। यदि रहे भी होंगे तो उन्हें लोग श्याम रंगीला जितना भी शायद न जानते हों। इंदिरा गाँधी को रायबरेली से चुनाव हारने वाले राजनारायण जी भी समाजवादी राजनीति के श्याम रंगीला थे। एकदम फक्क्ड़ । बात-बात पर हंसाते थे ,खुद भी हसंते थे ,लेकिन राजनीति भी जमकर करते थे। मुझे लगता है कि भाजपा को श्याम रंगीला में कहीं राजनारायण के दर्शन तो नहीं हो गए।
बहरहाल श्याम रंगीला के साथ जो हुआ ,वो नहीं होना चाहिए था । चुनाव लड़ने वाले किसी भी नागरिक के साथ नहीं होना चाहिए। यदि ऐसा हो रहा है तो इसके लिए देश और लोकतंत्र शर्मिंदा है। गनीमत है कि हम भारत में रहते हैं ,स्लोवाकिया में नहीं। हालाँकि हम स्लोवाकिया की तरह अपने ही अनेक नेताओं के कत्ल के आरोपी रहे हैं। ईश्वर करे कि देश में कभी कोई सिरफिरा पैदा न हो। फिर हमारे नेताओं के जिस्म छलनी न हों। ये सुनिश्चित करने के लिए हमें श्याम रँगीलाओं को संरक्षण देना होगा । उन्हें चुनाव लड़ने का मौक़ा देना होग। अन्यथा लोकतंत्र को लोकतंत्र कहने में संकोच होगा। अठारहवीं लोकसभा के लिए हो रहे मतदान के बाकी के चरणों में निर्वाचन अधिकारी किसी की कठपुतली न बनें। किसी को चुनाव लड़ने से जानबूझकर न रोकें। क्योंकि अभी इस देश में एक निशान है,एक संविधान है। एक किसान है ,एक जवान है। समृद्ध अतीत है और संभावनाओं से भरा भविष्य है। वर्तमान कैसा है वो आपके सामने है ही ।