समस्या ये है कि हम या हमारी राजनीति कभी ये सवाल नहीं करती कि सरकारें विकास को एक सतत प्रक्रिया बनाये रखने के बजाय उसका इस्तेमाल एक चारे के रूप में क्यों करतीं है। सरकारों को विकास की याद ऍन चुनावों के समय ही क्यों आती है ? क्या वे चुनावों के लिए विकास को अवरुद्ध करने का अपराध नहीं करतीं ? विकास को एक जरूरत के बजाय राजनीतिक हथियार क्यों बना दिया गया है ? क्या इससे मुक्ति आवश्यक नहीं है ,या सभी राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर कोई दुरभि संधि कर ली है ?
परिश्रमी,दृढ प्रतिज्ञ और तपोनिष्ठ प्रधानमंत्री जी का दुर्भाग्य ये है कि अब उनके द्वारा एक दशक में बनाये गए हवामहल की ईंटे खिसकने लगीं है। अभी तक उनके द्वारा खोले गए शरणार्थी शिविरों में कांग्रेस और दीगर दलों के शरणार्थी नेता शरण ले रहे थे किन्तु अब उनकी पार्टी से भी लोग पलायन कर उनकी प्रतिद्वंदी कांग्रेस के शरणार्थी शिविरों में जाते दिखाई देने लगे है। हरियाणा से पहले मध्यप्रदेश में इसकी शुरुवात हुई थी । अब पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों से प्रधानमंत्री के अधिनायकत्व से खिन्न लोग भाग रहे है। या बगावत कर रहे हैं। चूंकि क़ानून होने के बाद भी अब दल-बदल कोई अपराध या अनैतिक कृत्य नहीं है इसलिए सभी के लिए ये क्षम्य है। भाजपा में जिस तरह से कांग्रेस का काठ-कबाड़ भरा गया है उससे भाजपा के आम कार्यकर्ता में भारी असंतोष है ,जो विकास की बेमौसम बरसात पर भारी पड़ सकता है।
चूंकि हम भाजपा के भाग्यविधाताओं की मजबूरी को समझते हैं इसलिए हमारी उनके प्रति सहानुभूति है। हमारी सहानुभूति को आप अन्यथा मत लीजिये। देश को तोड़ना और जोड़ना दो अलगअलग काम हैं जो राजनीतिक दल अपनी-अपनी समझ और सामर्थ्य से कर रहे हैं जनता धर्म के नशे में है लेकिन धीरे-धीरे धर्म का नशा उतर रहा है। उम्मीद की जाना चाहिए कि नशामुक्त अवाम अपने भविष्य का फैसला समझदारी से करेगी और नहीं करेगी तो खुद ही भुगतेगी। इसमने हमारा आपका कोई कसूर नहीं होगा। हम और आप मिलाकर अपनी क्षमता से नशे की गिरफ्त में आयु अवाम को झकझोरने का यत्न,प्रयत्न लगातार कर रहे हैं। ये जोखिम का काम है फिर भी हमने इसे छोड़ा नहीं है । कहते हैं कि जब कोई खलनायक अपनी खलवृत्ति को नहीं छोड़ता तो किसी सज्जन व्यक्ति को भी अपनी सज्जनता का त्याग नहीं करना चाहिए।
कुल जमा बात ये है कि आप विकास की बेमौसम बरसात के आनंद लीजिये लेकिन ठीक वैसे ही जैसे एक पर्यटक लेता है । हकीकत समझिये कि ये विकास बरसाती ही है ,टिकाऊ नहीं। ये एक चारा है जो मतदाता नाम की मछली को फ़साने के लिए कांटेनुमा वंशी के नुकीले सिरे पर लगाईं जाती है। चारे के लालच में यदि आपने बरसाती विकास के लिए अपना मुंह खोला तो आपका शिकार होना बहुत स्वाभाविक है। बरसाती विकास उस मांजे की तरह है जो किसी भी मछली के लिए घातक होता है।
स्मृति यादव की रिपोर्ट