मशरूम उत्पादन पर दिया गया कृषकों को प्रायोगिक प्रशिक्षण।
कानपुर नगर, चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर द्वारा गांव अनूपपुर में प्रशिक्षण कराया गया है। इस अवसर पर केंद्र के प्रभारी डॉक्टर अजय कुमार सिंह ने बताया कि मशरूम की खेती कृषकों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। इसकी खेती के लिए अन्य फसलों के समान खेती की आवश्यकता नहीं होती। उन्होंने बताया कि इसे अपनाकर बेरोजगारी एवं अपर्याप्त पोषण और औषधीय गुणों को जन – जन में प्रचारित करने की आवशयकता है। मशरूम का उत्पादन फसल काटने के बाद बचे हुए भूसे पर किया जाता है। ऐसा अनुमान है कि भारत में प्रति वर्ष लगभग 30 से 35 मिलियन टन कृषि अवशेष उत्पन्न होता है । मशरूम (ढिंगरी) और अन्य सूखे मशरूमों में 20 से 30 प्रतिशत तक प्रोटीन होती है। वैज्ञानिक डा.निमिषा अवस्थी ने बताया कि मशरूम में फॉलिक एसिड तथा विटामिन – बी काम्प्लेक्स के साथ आयरन भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है। मशरूम बीज को किसी सरकारी या गैर सरकारी मशरूम बीज उत्पादक संस्थाओं से ही प्राप्त करना चाहिए । वैज्ञानिक डॉक्टर राजेश राय ने बताया कि मशरूम का बीज प्राय: गेंहू के दानों पर बनाया जाता है।ढिंगरी की खेती गेहूं के उपचारित भूसे पर की जाती है। इसके लिए करीब 90 से 100 लीटर पानी में 10 से 12 किग्रा. सूखे भूसे को प्लास्टिक या लोहे के ड्रम में भिगो दिया जाता है। साथ ही 10 लीटर पानी में 7.5 ग्राम बाविस्टीन तथा 125 मिलीलीटर फार्मेलिन घोलकर इसे भूसे में मिला दिया जाता है। इसके तुरंत बाद ड्रम को धक देना चाहिए। लगभग 18 घंटे बाद गीले भूसे को एक साफ जाली पर रखा जाता है। इससे अधिक पानी निकल जाता है। फिर भूसे को तिरपाल पर निकल जाता है। फिर भूसे को तिरपाल पर निकालकर आधे घंटे के लिए सूखा लिया जाता है। इसके बाद पॉलीथीन के पैकेट में बिजाई करते हैं। पॉलीथीन 3/4 तक भरकर उसका मुँह बांध देते हैं, और फिर उसमें कुछ छेद सुजे की सहायता से कर देते हैं। लगभग 20-25 दिन बाद उत्पादन प्राप्त होने लगता है ।
हरिओम की रिपोर्ट