उन्नाव कांड: पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाई कोर्ट से मिली बड़ी राहत, उम्रकैद की सजा पर रोक
डिस्ट्रिक हेड। राहुल द्विवेदी।
नई दिल्ली ।दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के चर्चित उन्नाव बलात्कार मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को बड़ी राहत प्रदान की है। न्यायमूर्ति सुब्रमोनियम प्रसाद और न्यायमूर्ति हर्ष वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने सेंगर की दोषसिद्धि के खिलाफ लंबित अपील के मद्देनजर उनकी सजा को निलंबित (Suspend) करते हुए उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है।
न्यायालय का कड़ा रुख और सख्त शर्तें
हालांकि अदालत ने सेंगर को रिहा करने का आदेश दिया है, लेकिन पीड़िता की सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए कई अभूतपूर्व शर्तें लगाई हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि इन शर्तों का रत्ती भर भी उल्लंघन हुआ, तो जमानत तत्काल रद्द कर दी जाएगी।
सख्त घेराबंदी: कुलदीप सेंगर को पीड़िता या उसके परिवार के निवास स्थान से 5 किलोमीटर के दायरे में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होगी।
शहर छोड़ने पर पाबंदी: जमानत अवधि के दौरान सेंगर को दिल्ली में ही निवास करना होगा। वह अदालत की अनुमति के बिना दिल्ली की क्षेत्रीय सीमा से बाहर नहीं जा सकेंगे।
पुलिस निगरानी: उन्हें प्रत्येक सोमवार को स्थानीय पुलिस स्टेशन में अनिवार्य रूप से अपनी हाजिरी दर्ज करानी होगी। साथ ही, उन्हें अपना पासपोर्ट अदालत में जमा करना होगा।
क्या था पूरा मामला?
यह मामला जून 2017 का है, जब एक नाबालिग लड़की ने कुलदीप सिंह सेंगर पर बलात्कार का आरोप लगाया था। इस मामले ने तब राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं जब न्याय न मिलने पर पीड़िता ने मुख्यमंत्री आवास के बाहर आत्मदाह की कोशिश की थी। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मामला उत्तर प्रदेश से दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में स्थानांतरित हुआ। दिसंबर 2019 में ट्रायल कोर्ट ने सेंगर को POCSO एक्ट और बलात्कार की धाराओं में दोषी पाते हुए ‘अंतिम सांस तक’ आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
कानूनी पेच और आगे की राह
सेंगर पिछले कई वर्षों से जेल में बंद हैं और उन्होंने अपनी दोषसिद्धि को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। उनकी दलील थी कि अपील की सुनवाई में लंबा समय लग रहा है और वह पहले ही जेल में पर्याप्त समय बिता चुके हैं। हालांकि, सेंगर के लिए जेल से बाहर आना इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि वह पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के मामले में भी सजा काट रहे हैं।
पीड़िता के वकीलों ने सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है, जबकि सेंगर के समर्थकों ने इस फैसले को न्याय की दिशा में एक कदम बताया है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी




