*10 साल प्रधानमंत्री रहने के बाद*
आज के अखबारों में छपा है, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “भारतीय समाज में कोई धार्मिक भेदभाव नहीं है”। इसपर क्या कहा जाये और क्या नहीं तय करना बड़ा मुश्किल है।
साकेत गोखले के ट्वीट से प्रेरित होकर याद आया, *भारत की संसद में भाजपा सांसद रमेश विधूड़ी ने साथी सांसद (बसपा के।* अब वहां से भी निष्काषित और उसकी अलग कहानी है) *दानिश अली को अपमानित किया। उनके लिए कटुआ, मुल्ला और आतंकवादी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। कोई कार्रवाई नहीं हुई।*
महुआ मोइत्रा का मामला बाद का है उन्हें संसद से निष्काषित किया जा चुका है। (वह आधे से थोड़ी कम महिला के खिलाफ पुरुषों का बहुमतवाद तो है ही, भले वे इसकी परवाह नहीं करतीं)।
आज ही मैंने इमरजेंसी के नारे, “बातें कम, काम ज्यादा” को याद किया है। अब रेल परिसर में लिखे, “सावधानी हटी, दुर्घटना घटी” की भी याद आ रही है। इतने वर्षों बाद रेलवे में अभी भी ऐसा होता हो पर झूठ बोलने, पहले का कहा याद नहीं रखने जैसी सावधानी हटने पर कोई दुर्घटना नहीं होती।
*प्रचारकों की ताकत के आगे ना उनके झूठ और ना उससे होने वाली दुर्घटना मुद्दा बनती है।* अब जब पुराना और नया वीडियो साथ-साथ चलाया जा सकता है। तो ऐसा वीडियो बनाने की हिम्मत बहुत कम लोग करते हैं।
साकेत गोखले ने लिखा है, *10 साल में मोदी की सबसे बड़ी और एकमात्र उपलब्धि यह है कि वे पलक झपकाये बिना इस तरह के झूठ बेशर्मी से बोल सकते हैं।*
टाइम्स एंड स्पेस न्यूज ब्यूरो