प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चतरा की सभा में कहा कि लोकसभा चुनाव 2024 के बीच ‘इंडिया’ अलायंस ने अपनी हार मान ली हैं। पीएम मोदी ने बिना नाम लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा- ‘शहजादे को उनकी उम्र से भी कम सीटें मिलेंगी। प्रधानमंत्री ने कहा- ‘तीन चरणों के चुनाव के बाद ही कांग्रेस और उसके साथियों ने एक तरह से अपनी हार स्वीकार कर ली है। तीन चरण का मतदान अभी मशीनों में कैद है किन्तु केंद्रीय गृहमंत्री अपनी तीसरी आँख से देखकर कह रहे हैं की भाजपा 190 सीटें तो जीत चुकी है । जाहिर है कि दाल में काला ही काला है अन्यथा इस तरह की गैरजिम्मेदाराना बात कौन करता है ?
मुझे दरअसल आज मातृ दिवस पर राजनीति की राजमाताओं के बारे में लखना था ,लेकिन मोदी जी ने मुझे ऐसा नहीं करने दिया । वे उस राहुल गांधी को शाहजादा कहते हैं जो एक दशक से सत्ता से दूर है। उनकी नजर में राहुल की माँ और दादी ही नहीं बल्कि नाना भी किसी मुगलिया खानदान के हैं । मोदी जी के मन से अपनी हैसियत की दीनता जाने का नाम नहीं ले रही । वे इसीलिए लगातार राहुल-राहुल का नाम जपते रहते हैं। पूरे चुनाव अभियान में शुरू के चार दिन छोड़ दें तो सत्तारूढ़ भाजपा अपने चुनाव घोषणा पत्र और दस साल की उपलब्धियों पर बोलने के बजाय केवल और केवल कांग्रेस तथा राहुल पर केंद्रित है । कभी भाजपा को कांग्रेस का मुसलमान प्रेम खलता है तो कभी वे कांग्रेस के सत्ता में आने पर विरासत कर लगाने की बात करते हैं और जब कुछ नहीं बचता तो कांग्रेस के शुभचिंतक रहे अमरीका में रहने वाले सैम अंकल के विचारों को कांग्रेस का विचार मानकर हल्ला मचाने लगते हैं।
अगर कल मतदान का चौथा चरण न होता तो तय मानिये मैं मोदी जी के मातृप्रेम के बारे में लिखता,राहुल गाँधी ,ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा देश के तमाम राजनेताओं के मातृप्रेम का उल्लेख करता लेकिन मोदी जी तो अपनी माताराम के स्वर्गवास के बाद किसी की माँ को माँ मानते ही नहीं दिखाई दे रहे। वे राहुल की माँ को भी अपना राजनितिक शत्रु मानते हैं जबकि श्रीमती सोनिया गाँधी उनसे पुरानी नेता हैं । वे १९९१ से देश के सबसे बड़े राजनितिक दल कांग्रेस का प्रत्यक्ष और परोक्ष नेतृत्व कर रहीं हैं। मोदी जी जब अपने गुजरात के मुख्यमंत्री भी नहीं बने थे तब सोनिया गाँधी संसद में प्रतिपक्ष की नेता थीं। यानि संसदीय जीवन में भी वे माननीय मोदी से कम से कम डेढ़ दशक वरिष्ठ हैं।
बहरहाल मसला ये है कि माननीय मोदी जी अपनी जबान का कड़वापन कब दूर कर पाएंगे । उनकी जबान की कड़वाहट विपक्षी दलों के लिए ही नहीं बल्कि अपनी पार्टी के नेताओं के लिए भी हैं । खासतौर पर उन भाजपा नेताओं के लिए जो या तो उनके समक्ष हैं या उनके लिए प्रतिद्वंदी बन सकते हैं।
देश में चुनाव तो होते आये हैं और आगे भी होंगे। मोदी जी लाख कोशिश कर लें किन्तु ये देश उनके सपनों का देश नहीं बन सकता । यहां का संविधान ,खानपान,भाईचारा बदलने वाला नहीं है । यहां का 20 करोड़ मुसलमान देश छोड़कर जाने वाला नहीं है। वो यही रहकर मुल्क की तरक्की में भागीदारी करेगा। हमारे बुंदेलखंड में एक कहावत है कि – कौवों के कोसने से ढोर नहीं मरा करते’ अर्थात मोदी जी और उनकी पार्टी देश के मुसलमानों को भले ही भारतीय न माने ,भले ही उन्हें हौवा बनाकर राजनीति करे किन्तु अब मुसलमान देश की एक हकीकत हैं उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक नहीं बनाया जा सकता।
लोकसभा चुनाव के लिए शेष चार चरणों के मतदान के बाद क्या परिणाम आएंगे ये बाद की बात है ,किन्तु अभी इस बात की सख्त जरूरत है कि नेताओं को बेलगाम होने से रोका जाये। अदावत,नफरत की सियासत पर रोक लगाईं जाये अन्यथा जैसे तमाम गलतियों के लिए भाजपा आज कांग्रेस को पानी पी-पीकर कोसती है वैसे ही आने वाले कल में भाजपा को भी कोसा जा सकता है। अभी भी समय है सम्हलने का। भाजपा को अटल बिहारी भाजपा बनाने की कोशिश होना चाहिए न की मोशा वाली भाजपा।
स्मृति यादव की रिपोर्ट