*जब सवाल है तो जवाब क्यों नहीं?*
*प्रधानमंत्री सवालों से डरते हैं इसलिए प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते।* जनता ने उन्हें चुना था इसलिए झेलना पड़ा। झेल लिया। अब चुनाव फिर होने हैं और *चुनाव नतीजों पर शक है या भरोसा नहीं है तो क्या चुनाव आयोग को जवाब नहीं देना चाहिए।*
प्रधानमंत्री को जनता ने चुना था उनने अपनी शर्तों पर काम किया – ठीक है। पर *चुनाव आयोग प्रधानमंत्री की शर्तों पर काम करे यह जरूरी नहीं* है और ना सही है। उसे *निष्पक्षता या स्वतंत्रता दिखाने से कौन रोक रहा है?*
*भाजपा को ईवीएम से शिकायत पहले भी थी पर सत्ता में आने के बाद नहीं* है तो कारण भाजपा नहीं बताये यह समझ में आता है। पर *चुनाव आयोग?*
बात सिर्फ ईवीएम की नहीं है। जब चुनाव परिणाम उम्मीद के अनुसार नहीं है तो यह याद दिलाना बनता है कि 2019 के चुनाव पर अनुसंधान में हेर-फेर का संकेत था। *हेरफेर के संकेत के बाद का काम उसे सही या गलत साबित करना होना चाहिये था पर वह नहीं हुआ* और खबर है कि संबंधित विश्वविद्यालय से खुद को अनुसंधान से अलग कर लिया। कारण सत्तारूढ़ दल की ट्रोल सेना को माना जाता है पर वह अलग मुद्दा है।
यहां तक सब ठीक हो सकता है। लेकिन *जनता के पैसे से चलने वाला चुनाव आयोग क्या कर रहा है। चुनाव की पवित्रता बनाये रखने के लिए उसने क्या किया? नतीजों पर सवाल नहीं उठे, इसपर काम करना किसी जिम्मेदारी है?*
जहां तक एक्जिट पोल की बात है, सबसे विचित्र एक्जिट पोल सही साबित हुआ है। उसपर मेरा मानना है कि ऐसा जानबूझकर किया जाता है ताकि विचित्र नतीजे आने पर उसकी आड़ ली जा सके। *क्या इस बार ऐसा नहीं हुआ? खेल बड़ा* है। बहुत लोग शामिल हो सकते हैं। बहुतों का बहुत कुछ दांव पर हो सकता है लेकिन *क्या भारत का चुनाव परिणाम संदिग्ध रह सकता है?*
हाल के विधानसभा चुनाव नतीजों पर यह @AnumaVidisha का ट्वीट है। आप कांग्रेस की प्रवक्ता भी हैं।
दर्जनों विद्वान पत्रकार, कई जाने माने सैफ़ोलॉजिस्ट और राजनेता अलग अलग तरह से ख़ुद पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि हम जनता की नब्ज़ पढ़ नहीं पाये. लहर नहीं भाँप सके….कोई न कोई क़यास लगा रहे हैं कि ठीकरा कहीं तो फूटे! किसी के अहंकार को, किसी की मनमानी को, किसी की संगठन पर कमज़ोर पकड़ को केंद्र में रख कर आँकड़ों को आँकने की जुगत में हैं.
*जीवन के हर क्षेत्र में वैज्ञानिक सोच रखने वाले EVM को छोड़ हर दीगर बात को पकड़ पकड़ कर ध्यान में लाने की कोशिश कर रहे* हैं, कि शायद ये फैक्टर रहा, या वो फ़ैक्टर रहा….कॉंग्रेस के समय में EVM लागू हुई, तो कॉंग्रेस के लोग इसी भावना में EVM की प्री-प्रोग्रामिंग के बारे में कुछ कहते ही नहीं या बहुत हिचकते हैं….
….और ऊपर से जो भी इस मुद्दे की ओर उँगली उठाये उसके लिये *BJP IT सेल के ट्रोल गैंग को आवाज़ उठाने वालों के ऊपर “रण्डी रुदन” जैसे दर्जनों हीरे-जवाहरातों वाले शब्दकोश का प्रयोग करने की खुली छूट* है.
अभी कुछ दिनों पहले आये “काला पानी” सिरीज़ में एक डायलॉग सुना था कि किसी भी जटिल समस्या का हल सबसे सीधा और सामने दिखने वाला होता है.
*EVM hackable नहीं है, कहीं ये प्रमाणित हुआ है क्या?*
*6 लाख VVPAT और 19 लाख EVM के गुमने और malfunctioning की खबरों से आगे क्या मिला?*
*कोई पड़ताल या अधिकृत जानकारी है, जो EVM के रिप्लेसमेंट या malfunctioning के शक को सिरे से ख़ारिज कर सके?*
*समस्या के केंद्र में EVM की सेटिंग क्यों न मानें?*
संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।
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*चंदे में तो बहुत आगे है भाजपा!*
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के अनुसार *भाजपा को 22-23 में चंदे के रूप में 720 करोड़ रुपये मिले* हैं। इस अवधि में *कांग्रेस को सिर्फ 80 करोड़ रुपये मिले* हैं। भाजपा की लोकप्रियता यहां भी दिख रही है और इससे साफ है कि कांग्रेस उससे बहुत पीछे है। लेकिन *मीडिया में चुनाव हारना मुद्दा है यह जीत नहीं।* आज के अखबारों की खबरों पर मेरी पूरी रिपोर्ट भड़ास4मीडिया में पढ़ सकते हैं।
राहुल द्विवेदी की रिपोर्ट