जिन नेताओं की आत्मा जीवित होती है, उन्हें चिन्हित कर उनकी आत्मा को मार देते है।मरी हुई आत्मा की आवाज सुनना किसी जीवित नेता की आत्मा की आवाज से ज्यादा मुखर होती है। निडर होती है।साफ सुनाई देती है।
अंतरात्मा को बुलवाने से पहले उसे जागृत करना पड़ता है। आत्मा काले तिल, काले वस्त्र, काले धन और पतंजलि के शुद्ध घानी के सरसों के तेल से खुश होती है।आप जितना काला धन अर्पण करेंगे,सोयी हुई अंतरात्मा उतनी जल्दी जागेगी,बोलेगी। इतना तेज बोलेगी कि बहरा भी सुन ले।कान वाले तो सुन ही सकते हैं। इसमें किसी पंडित, पुजारी की जरूरत नहीं होती।छठे कान तक इसकी आवाज जाती ही नहीं है।
आत्माएं न मरें तो जनादेश का अपहरण असंभव है। भारत में जहां जहां बिना चुनाव के जनादेश बदला गया वहां पहले आत्माओं को मारा जाता है। आत्मा का कत्ल ही तो क्रास वोटिंग कहलाती है।क्रास वोटिंग दल बदल की सहोदर है। ये अजर अमर है। लेकिन ये मृत आत्माएं हैं। इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।
दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में हमारे देश की मरी हुई आत्माओं को लेकर कोई सानी नहीं है। हमें राजनीति में उलट फेर कराने वाली इन मरी हुई आत्माओं पर गर्व है।मरी हुई आत्माएं हमेशा लोकतंत्र के काम आती हैं।हमारा लोकतंत्र मरी हुई आत्माओं का लोकतंत्र है। हमारी लोक सभा, विधानसभाएं मरी हुई अंतरात्माओं से भरी पड़ी हैं।एक खोजिए,दस मिल सकती हैं।
मेरी जीवित आत्मा मुझे हरदम धिक्कारने की कोशिश करती है। शुभचिंतक कहते हैं कि पंडित जी कुछ दिनों के लिए अपनी आत्मा को मरने के लिए तैयार कर लीजिए मालामाल हो जाएंगे।घर वालों की तमाम शिकायतें दूर हो जाएगी। कोई आपको कंगाल,अलाल होने का ताना नहीं मारेगा। लेकिन मैं हूं कि किसी जीवित आत्मा की सलाह नहीं मानता।
सह संपादक
स्मृति यादव की रिपोर्ट